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 2035 तक विलुप्त हो जाएंगे ये जीव जंतु।
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2035 तक विलुप्त हो जाएंगे ये जीव जंतु।

by The Journal Story September 24, 2022 0 Comment
  • 2035 तक विलुप्त हो सकते हैं ये जीव-जंतु, लिस्ट में शामिल है अमूर लेपर्ड और सुमात्रा एलिफेंट
  • आज 100 से भी कम अमूर तेंदुए बचे हैं, करीब 180 को संरक्षित किया गया है।
  • WWF के अनुसार, दुनियाभर में केवल 80 सुमात्रा राइनो ही शेष हैं।

दुनियाभर में कई ऐसे जीव-जंतु हैं जो 2035 तक विलुप्त हो सकते हैं। आज के इस आर्टिकल में हम यहीं जानेंगे कि वो कौन-से जीव हैं जो विलुप्त होने की कगार पर हैं।

अमूर लेपर्ड

Image Credit: Unplash

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के मुताबिक, यह बिल्ली, तेंदुओं की प्रजाति से है, जोकि सर्वाधिक खतरे में है। यह जीव अमूर-हीलॉन्ग क्षेत्र में सर्वाधिक पाई जाती है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार, आज 100 से भी कम अमूर तेंदुए बचे हैं, करीब 180 को संरक्षित किया गया है। 2017 में, इनकी संख्या केवल 60 रह गई थी।

ब्लैक राइनो

Image Credit: Unplash

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के मुताबिक, यूरोपीय शिकारियों के कारण, 20वीं सदी में ब्लैक राइनो की संख्या में जबरदस्त कमी आई। ब्लैक राइनो नामीबिया और पूर्वी अफ्रीका में रहते हैं और सफेद गैंडों से कुछ छोटे होते हैं। सेव द राइनो की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में करीब 5,627 ब्लैक राइनो ही बचे हैं।

2088 तक विलुप्त हो जाएंगे इंसान! जानें इसे लेकर क्या कहते हैं विशेषज्ञ.

सुमात्रा राइनो

Image Credit: Unplash

सुमात्रा राइनो भी लुप्तप्राय जानवरों की लिस्ट में शामिल है। यह उन जानवरों में शामिल है जो पश्चिमी इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में सर्वाधिक पाए जाते हैं। सुमात्रा गैंडों में कई अलग-अलग लक्षण होते हैं। वे सबसे छोटी राइनो प्रजाति से हैं और दो सींग वाले एशियाई गैंडे हैं। WWF के अनुसार, दुनियाभर में केवल 80 सुमात्रा राइनो ही शेष हैं।

जावन राइनो

Image Credit: Unplash

जावन राइनो गैंडों की प्रजातियों में सर्वाधिक लुप्तप्राय है। इनके संरक्षण के प्रयास जारी हैं लेकिन कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है। प्राकृतिक आपदाओं और बीमारी के चलते इनकी संख्या घटती जा रही है। ये भारतीय गैंडों से छोटे होते हैं, जो औसतन लगभग 10 फीट लंबे और चार से छह फीट ऊंचे होते हैं। ये गैंडे टहनियाँ, फल खाते हैं। सेव द राइनो के मुताबिक, केवल 72 जावन राइनो ही बचे हैं।

ओरंगउटान

Image Credit: Unplash

ओरंगउटान फाउंडेशन इंटरनेशनल के मुताबिक, ओरंगउटान 2035 तक विलुप्त होने वाली प्रजातियों में से एक माना जा रहा है। जंगलों की कटाई, जंगलों में आग की घटना, खनन आदि के चलते इनके विलुप्त होने की दर बढ़ गई है। ओरंगउटान केवल बोर्नियो और सुमात्रा में रहते हैं। दुनियाभर में करीब 41,000 बोर्नियन और 7,500 सुमात्रा ओरंगउटान ही शेष हैं।

बोर्नियन ओरंगउटान

Image Credit: Unplash

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के मुताबिक, पिछले 60 वर्षों में, बोर्नियन ओरंगउटान की संख्या आधी हो गई है। जंगलों की कटाई और आग की घटना के साथ-साथ इनका शिकार किए जाना इस प्रजाति के विलुप्त होने का प्रमुख कारण है। दुनियाभर में करीब 41,000 बोर्नियन ओरंगउटान ही बचे हैं।

सुमात्रा ओरंगउटान

Image Credit: Sumatra Eco Travel

तेजी से वनों की कटाई और अवैध पालतू व्यापार ही ओरंगउटान की इस प्रजाति को लुप्तप्राय बना रहा है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के मुताबिक, सुमात्रा ओरंगउटान के चेहरे के बाल बोर्नियन की तुलना में लंबे होते हैं। ये समूहों में रहना पसंद करते हैं। इनकी संख्या करीब 7,500 ही रह गई है।

गोरिल्ला

Image Credit: Unplash

ओरंगउटान की ही तरह, गोरिल्ला भी संकट में है। भले ही ये विलुप्त होने की कगार पर हैं लेकिन संरक्षण के जरिए इन्हें बचाया जा सकता है। जैसा कि 2018 की एक रिपोर्ट बताती है कि माउंटेन गोरिल्ला की 1967 में संख्या केवल 240 रह गई थी लेकिन संरक्षण के चलते 2018 में इनकी संख्या 604 तक पहुंच गई।

क्रॉस रिवर गोरिल्ला

Image Credit: Worldwildlife.org

लकड़ी, कृषि और पशुधन के लिए वन-समाशोधन, अवैध शिकार गोरिल्ला की इस प्रजाति के लुप्तप्राय होने की प्रमुख वजह है। दुनिया भर में करीब 300 क्रॉस रिवर गोरिल्ला ही शेष हैं।

पूर्वी तराई गोरिल्ला

Image Credit: Quora

कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में आवास विनाश, अवैध शिकार और अवैध खनन के चलते पूर्वी तराई गोरिल्ला का अस्तित्व खतरे में है। सबसे बड़ी गोरिल्ला प्रजाति 1990 के दशक के मध्य में आधे से अधिक घट गई थी, अब लगभग 17,000 ही शेष हैं।

पश्चिमी तराई गोरिल्ला

Image Credit: Worldwildlife.org

शिकार, तस्करी, जंगलों की कटाई और बीमारी इनके विलुप्त होने के लिए जिम्मेदार होंगे। ये गोरिल्ला अन्य प्रजातियों की तुलना में छोटे होते हैं। इन गोरिल्लाओं के 1,00,000 तक बचे होने की उम्मीद है।

हॉक्सबिल कछुआ 

Image Credit: Unplash

तस्करी, शिकार, बाजार में इनकी मांग; ऐसे ही कुछ कारण हैं जिनके चलते ये लुप्तप्राय है। हॉक्सबिल कछुए उन जानवरों में से हैं जिनकी आबादी का सटीक अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन एक अनुमान से पता चलता है कि करीब 8,000 मादा शेष हैं। पिछली सदी में इनकी जनसंख्या में 80 प्रतिशत की गिरावट आई है।

साओला

Image Credit: Pinterest

दुर्भाग्य से यह पहले से ही सबसे लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में आ चुका है। साओला जीवित रहने के लिए जंगल पर निर्भर है, लेकिन पेड़ों की कटाई, खेती और आगजनी के चलते जंगलों का कम होता फैलाव, इनके लिए बड़ा खतरा साबित हो रहा है। यह वियतनाम और लाओस में एनामाइट पर्वत पर पाए जाते हैं। फिलहाल, 750 से भी कम साओला बचे हैं।

सुमात्रा हाथी

Image Credit: Unplash

जैसे-जैसे सुमात्रा के हाथियों की रहने की जगह सिकुड़ती गई, वैसे-वैसे वो इंसानी इलाकों में प्रवेश करने लगे। पेडों की कटाई की दर ने हाथियों को मजबूर कर दिया है कि वह इंसानी बस्तियों में जाते हैं और फसलों को तहस-नहस करने के अलावा, घरों और संसाधनों का नुकसान करते हैं। इससे परेशान इंसान काफी बार हाथियों को जहर दे देते हैं या गोली मार देते हैं। ये हाथी बोर्नियो और सुमात्रा के दक्षिण पूर्व एशियाई द्वीपों पर रहते हैं। जंगल में इनकी संख्या 2,800 के करीब है।

Link Source: Wikipedia

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