भारत–रूस ने तय किया महत्वाकांक्षी व्यापार लक्ष्य: 2030 तक 100 बिलियन डॉलर का लक्ष्य.

- भारत–रूस ने “विज़न 2030” के तहत द्विपक्षीय व्यापार को 2030 तक 100 बिलियन डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य तय किया।.
- साझेदारी ऊर्जा और रक्षा से आगे बढ़कर कृषि, फार्मा, इंफ्रास्ट्रक्चर, डिजिटल इकॉनॉमी और नए परिवहन मार्गों तक विस्तारित हुई.
- रुपये–रूबल लेन-देन, बेहतर लॉजिस्टिक मार्ग और संतुलित निर्यात रणनीति दोनों देशों के बीच व्यापार को अधिक स्थिर और संतुलित बनाने में मदद करेगी.
नई दिल्ली — भारत और रूस के बीच 23वें वार्षिक शिखर सम्मेलन के समापन पर दोनों देशों ने एक बड़ा आर्थिक रोडमैप पेश किया, जिसके तहत 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है।
इस नई साझेदारी — जिसे अनौपचारिक तौर पर “विज़न 2030” कहा जा रहा है — का उद्देश्य ऊर्जा और रक्षा जैसे पारंपरिक क्षेत्रों से आगे बढ़कर वस्तुओं, सेवाओं, तकनीक, निवेश और इन्फ्रास्ट्रक्चर सहयोग को व्यापक रूप देना है।
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असंतुलन से संतुलन की ओर: व्यापार विविधीकरण क्यों ज़रूरी है?
ऐतिहासिक रूप से भारत–रूस व्यापार काफी असंतुलित रहा है। वर्ष 2024–25 में भारत ने रूस को केवल 4.9 बिलियन डॉलर का निर्यात किया, जबकि रूस से आयात — विशेषकर कच्चे तेल और ऊर्जा उत्पाद — 63.8 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया।
इससे लगभग 59 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा हुआ, जिसे कम करना भारत की प्राथमिकता है।
व्यापार मंच के दौरान भारत के वाणिज्य मंत्री ने दोनों पक्षों से “मजबूत और संतुलित व्यापार संबंध” की अपील की।
इस संतुलन को सुधारने के लिए भारत कई क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने की योजना बना रहा है — उपभोक्ता वस्तुएँ, खाद्य उत्पाद, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स (विशेषकर स्मार्टफ़ोन), औद्योगिक कंपोनेंट्स, परिधान, और अन्य उत्पाद।
सेवाओं में भी भारतीय IT/BPM, हेल्थकेयर, शिक्षा और क्रिएटिव सेवाओं के लिए रूस एक बड़ा बाज़ार बन रहा है।
तेल से आगे: नए सेक्टर, नई राहें, नए अवसर
नया सहयोग ढांचा केवल ऊर्जा और रक्षा तक सीमित नहीं है। इसमें कृषि, खाद्य उद्योग, उर्वरक, दवाइयाँ, इंफ्रास्ट्रक्चर, औद्योगिक निर्माण, शिपबिल्डिंग, परमाणु ऊर्जा और डिजिटल इकॉनॉमी जैसे कई क्षेत्र शामिल हैं।
एक बड़ा कदम है — द्विपक्षीय व्यापार के लिए रुपये–रूबल आधारित भुगतान प्रणाली को बढ़ावा देना, जिससे डॉलर जैसी हार्ड करेंसी पर निर्भरता कम होगी और लेन–देन सरल होगा।
नई व्यापार मार्ग और कनेक्टिविटी सुधार
साझेदारी के तहत कई नए व्यापार मार्गों पर काम होगा:
- नॉर्थ–साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर
- नॉर्दर्न सी रूट
- चेन्नई–व्लादिवोस्तोक समुद्री मार्ग
इसके साथ ही सीमा शुल्क प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण और तेज़ कार्गो क्लीयरेंस भी शामिल है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर और औद्योगिक सहयोग
दोनों देश संयुक्त उद्यमों को प्रोत्साहित करेंगे, भारतीय कंपनियों का रूस में प्रवेश आसान होगा, और उर्वरक संयंत्र, क्रिटिकल मिनरल्स, शिपबिल्डिंग, हाई-टेक विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में बड़े प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा मिलेगा।
ऊर्जा में नए आयाम
तेल और गैस सहयोग के साथ-साथ:
- परमाणु ऊर्जा
- छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर
- फ्लोटिंग न्यूक्लियर प्लांट
- कृषि और चिकित्सा में गैर-ऊर्जा परमाणु उपयोग
— जैसे क्षेत्रों में साझेदारी गहरी होगी।
बदलती भू-राजनीति में स्थायी भरोसा
वैश्विक भू-राजनीतिक तनावों के बीच भारत और रूस का यह सहयोग दिखाता है कि दोनों देश अपने रणनीतिक हितों को प्राथमिकता देते हैं। पश्चिमी शक्तियों के दबाव के बावजूद भारत ने स्पष्ट किया है कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखेगा।
रूस के लिए लक्ष्य है — तेल-निर्भर निर्यात को विविध बनाना और एशिया के उभरते बाज़ारों में बड़ी उपस्थिति बनाना।
भारत के लिए — ऊर्जा सुरक्षा, क्रिटिकल मिनरल्स, रक्षा सहयोग और नए बाज़ारों तक पहुँच महत्वपूर्ण हैं।
दोनों देशों का विश्वास है कि 100 बिलियन डॉलर का लक्ष्य 2030 से पहले भी हासिल किया जा सकता है।
कौन सी चुनौतियाँ आ सकती हैं?
- भारत को गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में निर्यात को बड़े स्तर पर बढ़ाना होगा, जिसके लिए गुणवत्ता मानकों, रूसी बाज़ार की ज़रूरतों और नियमों को समझना होगा।
- भुगतान प्रणाली, बैंकिंग, बंदरगाहों और कॉरिडोर जैसे बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना आसान नहीं होगा।
- भू-राजनीतिक दबाव, प्रतिबंध और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता वास्तविक चुनौतियाँ हैं।
- भारत में सप्लाई चेन, निर्यात प्रोत्साहन, और उत्पादन को मजबूत करना ज़रूरी होगा ताकि घरेलू उद्योग लाभ उठा सकें।
सामान्य भारतीयों के लिए इसका क्या मतलब है?
यदि यह साझेदारी सफल हुई, तो भारतीय किसानों, MSMEs, विनिर्माण कंपनियों, और सेवा क्षेत्र के लिए नए अवसर खुलेंगे:
- खाद्य और समुद्री उत्पाद
- वस्त्र, चमड़ा, दवाइयाँ
- इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी
- ऑटो पार्ट्स और शिपबिल्डिंग
- उर्वरक और खनन
इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स से रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
सबसे महत्वपूर्ण — रुपये–रूबल व्यापार और तेल आयात पर निर्भरता कम होने से भारत की आर्थिक स्थिरता बढ़ेगी।
निष्कर्ष: दीर्घकालिक साझेदारी पर रणनीतिक दांव
“विज़न 2030” सिर्फ व्यापार लक्ष्य नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक पुनर्निर्माण है।
ऊर्जा और रक्षा से आगे बढ़कर अब व्यापार, तकनीक, इन्फ्रास्ट्रक्चर, क्रिटिकल मिनरल्स, फूड सिक्योरिटी और वित्तीय कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में सहयोग नई दिशा तय करेगा।
भारत के लिए यह अवसर है — निर्यात बढ़ाने का, ऊर्जा सुरक्षित करने का, और औद्योगिक–तकनीकी सहयोग को मजबूत करने का।
रूस के लिए — भारत एक स्थिर और तेज़ी से बढ़ता बाज़ार है, जिसके साथ सहयोग वैश्विक दक्षिण में उसकी भूमिका को मजबूत करता है।
यदि दोनों देश वादों को क्रियान्वित कर पाते हैं, तो यह साझेदारी 21वीं सदी के सबसे प्रभावशाली आर्थिक पुनर्संतुलनों में से एक साबित हो सकती है।










































































































































































































